आरजीएनयूएल कार्यशाला में प्रो. एम.एम. गोयल ने न्याय और दक्षता के लिए नीडोनॉमिक्स आधारित विधि-अर्थशास्त्र के नैतिक एकीकरण का समर्थन किया

पटियाला, 1 नवम्बर: पंजाब स्थित राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ (RGNUL) के स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर, लॉ एंड इकोनॉमिक्स (SALE)
ने आज “विधि और अर्थशास्त्र” पर एक कार्यशाला का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य न्याय और आर्थिक दक्षता के बीच के अंतर्संबंधों को समझना था।

नीडोनॉमिक्स के प्रवर्तक, सेवानिवृत्त प्रोफेसर कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय और तीन बार कुलपति रह चुके प्रो. मदन मोहन गोयल ने “नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से विधि और अर्थशास्त्र: न्याय और दक्षता की ओर” विषय पर एक विचारोत्तेजक व्याख्यान दिया। इस सत्र में नीडोनॉमिक्स रूपरेखा के अंतर्गत विधि, अर्थशास्त्र और न्याय के नैतिक एकीकरण की चर्चा की गई। इस अवसर पर डॉ. बृंदप्रीत कौर ने अध्यक्षता की।

कार्यशाला की शुरुआत स्वागत भाषण से हुई, जिसे कार्यक्रम के संयोजक श्री गुर्मंदर सिंह ने प्रस्तुत किया। उन्होंने ही प्रतिभागियों के समक्ष प्रो. एम.एम. गोयल का परिचय कराया।
प्रो. गोयल ने आमंत्रण हेतु अपना नाम सुझाने और आरजीएनयूएल में अंतःविषयक विमर्श को प्रोत्साहित करने के लिए सह-संयोजक सुश्री एति गुप्ता का आभार व्यक्त किया।

अपने संबोधन में प्रो. गोयल ने कहा कि नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (NST) विधिक प्रणाली और आर्थिक दक्षता के बीच के संबंधों को मानवीय आवश्यकताओं से उत्पन्न नैतिक मूल्यों के मार्गदर्शन में समझने का एक रूपांतरकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो लोभ नहीं बल्कि आवश्यकता पर आधारित है। उन्होंने कहा कि विधि और अर्थशास्त्र शासन के दो मूल स्तंभ हैं जो निष्पक्षता, व्यवस्था और समृद्धि सुनिश्चित करते हैं, किंतु यदि मूल्य आधारित दिशा का अभाव हो तो विधि शोषण का उपकरण बन सकती है, न्याय का नहीं।

उन्होंने समझाया कि नीडोनॉमिक्स रूपरेखा एक नैतिक सुधार प्रस्तुत करती है जो विधिक और आर्थिक अंतःक्रियाओं को आवश्यकता-आधारित न्याय के सिद्धांत में निहित करती है, जिससे दक्षता और समानता में संतुलन स्थापित होता है। प्रो. गोयल ने कहा कि अर्थशास्त्र और विधि का एकीकरण केवल अकादमिक विषय नहीं, बल्कि 21वीं सदी में सतत शासन के लिए अनिवार्य है।

उन्होंने कहा कि जब आर्थिक उपकरणों को विधिक ढांचे में लागू किया जाता है, तो संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग, नवाचार को प्रोत्साहन और न्याय वितरण की गुणवत्ता में सुधार संभव है — बशर्ते हर निर्णय में नैतिक और मानवीय दृष्टिकोण मार्गदर्शक हो।

एनएसटी की नैतिक प्रतिबद्धता उद्धृत करते हुए — “हम किसी का शोषण नहीं करेंगे और किसी को हमारा शोषण नहीं करने देंगे” — प्रो. गोयल ने बल दिया कि कर्तव्य और भक्ति, बाह्य और आंतरिक संसार का स्वस्थ समन्वय आवश्यक है ताकि विधि और अर्थशास्त्र मानवता की प्रभावी सेवा कर सकें। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि दक्षता में नैतिक दिशा का अभाव हो, तो यह बहिष्कारी हो सकती है, और उन्होंने आर्थिक तर्कशास्त्र को संयम, समानता और करुणा के सिद्धांतों में आधार देने का आह्वान किया।

नीडोनॉमिक्स दृष्टि के अंतर्गत, विधि न्याय का साधन बनती है, अर्थशास्त्र आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम, और दोनों मिलकर एक सतत एवं मानवीय समाज की नींव रखते हैं।
प्रो. गोयल ने निष्कर्ष में कहा कि नीति, शोध और शिक्षा का भविष्य “न्याय के साथ दक्षता – नीडोनॉमिक मार्ग” को अपनाने में निहित है।

 

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.