सुप्रीम कोर्ट ने लाल किले पर अधिकार का दावा करने वाली महिला की याचिका खारिज की

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,5 मई ।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस महिला की अर्जी खारिज कर दी, जिन्होंने खुद को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के परपोती बताते हुए दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक लाल किले पर मालिकाना हक जताया था।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस याचिका को “पूर्ण रूप से निराधार” करार दिया। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि ऐतिहासिक धरोहरों पर इस प्रकार के निजी स्वामित्व के दावे स्वीकार नहीं किए जा सकते।

महिला ने आरोप लगाया था कि वह बहादुर शाह जफर के परपोते की विधवा है और लाल किला उसके परिवार की निजी संपत्ति है, जिस पर उसे अधिकार मिलना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला ऐतिहासिक और कानूनी दोनों ही लिहाज़ से आधारहीन है।

, कोर्ट ने दखल दिया, “आप इस देश की ऐतिहासिक धरोहरों को निजी संपत्ति में बदलने की कोशिश नहीं कर सकतीं। लाल किला राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है, जो पूरी भारतीय जनता की धरोहर है, न कि किसी परिवार की निजी संपत्ति।”

सरकार की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि लाल किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है और उसे किसी भी तरह की निजी संपत्ति मानना न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है, बल्कि इससे कानून-व्यवस्था पर भी असर पड़ेगा।

महिला के लिए वकील ने कहा कि उनका क्लाइंट ऐतिहासिक डॉक्युमेंट्स और फैमिली रिकॉर्ड्स के आधार पर दावा पेश कर रहा है, लेकिन कोर्ट ने यह कहा कि स्वतंत्र भारत में ऐतिहासिक मेमोरियल पर कोई प्राइवेट क्लेम बर्दाश्त नहीं है।

लाल किला मुगल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश शासन के तहत चला गया था। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद से यह स्मारक केंद्र सरकार के अधिकार में है और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।

कोर्ट के इस निर्णय के बाद ऐतिहासिक धरोहरों पर निजी मालिकी के हक का दावा करने के लिए एक साफ संदेश गया है कि ऐसी याचिकाएं सख्ती से खारिज कर दी जाएंगी।

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