समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,17 अप्रैल। हैदराबाद में एक ओर जहां विकास की रफ्तार तेज़ करने की योजना थी, वहीं दूसरी ओर उसी रफ्तार ने जंगल की हरियाली और मासूम जानवरों का बसेरा उजाड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मामले में आज तेलंगाना सरकार को सख्त लहजे में फटकार लगाई है। मामला है हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से सटे कांचा गाचीबोवली क्षेत्र के 100 एकड़ जंगल की अवैध कटाई का।
तेलंगाना में कांग्रेस सरकार 400 एकड़ भूमि के पुनर्विकास की योजना बना रही है, जो विश्वविद्यालय से लगी हुई है। इसी योजना के तहत बिना किसी वैध अनुमति के मात्र तीन दिनों के भीतर लगभग 100 एकड़ वन क्षेत्र पर बुलडोज़र चला दिया गया। इस दौरान न तो वन विभाग की अनुमति ली गई और न ही किसी प्रकार की पर्यावरणीय मंज़ूरी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, “हम सिर्फ जानना चाहते हैं कि बिना अनुमति के 100 एकड़ का जंगल कैसे साफ़ किया गया। अगर निर्माण करना था, तो नियमानुसार प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई गई?”
अदालत के समक्ष प्रस्तुत वीडियो में जंगली जानवरों को इधर-उधर भागते और आवारा कुत्तों से घायल होते हुए देखा गया। यह दृश्य न केवल अमानवीय था, बल्कि सरकार की लापरवाही को भी उजागर करता है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या सरकार ने जानवरों को ‘संरक्षित प्रजातियों’ की सूची से स्वयं ही हटा दिया? कोर्ट ने वन्यजीव वार्डन को तत्काल प्रभाव से जानवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।
अदालत ने स्पष्ट चेतावनी दी, “अगर 15 मई तक यह नहीं बताया गया कि इस उजड़े हुए जंगल को कैसे पुनर्स्थापित किया जाएगा, तो मुख्य सचिव सहित वरिष्ठ अधिकारियों को अस्थायी जेल भेजा जा सकता है।”
न्यायमूर्ति गवई ने सख्त लहजे में सवाल उठाया, “तीन दिन में, वो भी छुट्टियों में, इतनी जल्दबाज़ी क्यों? कोई एक पेड़ भी अब नहीं कटेगा।”
इस परियोजना का विरोध छात्रों और पर्यावरण संगठनों द्वारा किया गया है। वाता फाउंडेशन ने इस भूमि को “डिम्ड फॉरेस्ट” घोषित करने और इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देने की मांग की है। तेलंगाना सरकार का कहना है कि यह ज़मीन विश्वविद्यालय की नहीं है, और बीआरएस व बीजेपी इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बहस में दिलचस्पी नहीं ली और कहा “हमें किसी की मंशा से नहीं, केवल पर्यावरण की रक्षा से मतलब है।”
यह मामला सिर्फ 100 एकड़ जमीन का नहीं है, बल्कि हमारी व्यवस्था, हमारी नीतियों और प्रकृति के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियों का एक बड़ा आईना है। आज जब पर्यावरण संकट दुनिया के सामने सबसे बड़ा प्रश्न बन गया है, ऐसे में अदालत का यह हस्तक्षेप एक उम्मीद की किरण है, कि विकास की दौड़ में प्रकृति को रौंदा नहीं जाएगा।
तेलंगाना सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने माना कि कुछ “त्रुटियाँ” हो सकती हैं, पर सरकार की मंशा “सद्भावनापूर्ण” थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कह दिया कि उसकी प्राथमिकता केवल पर्यावरण की रक्षा है, न कि सरकारी सफाई। अब सबकी निगाहें 15 मई की अगली सुनवाई पर हैं, जहां सरकार को यह साबित करना होगा कि वह नष्ट हुए जंगल को कैसे बहाल करेगी।
Comments are closed.