अमेरिकी और चीनी ने मिलकर दिया व्यापार विवाद को नया मोड़:

वॉशिंगटन: अमेरिका ने घोषणा की है कि चीन के माल पर सीमा शुल्क 245% तक बढ़ाया जा सकता है। यह फैसला चीन द्वारा किए गए प्रतिशोधी कदमों के जवाब में लिया गया है। अब तक अमेरिका ने चीनी सामानों पर 145% टैक्स लगाया था, जबकि चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 125% शुल्क लगा रखा था।
इस व्यापार युद्ध के बीच, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बताया कि अमेरिका ने उन जरूरी खनिजों पर भी नजर रखी है, जिनकी देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्णता है। इन खनिजों में कोबाल्ट, लिथियम, निकल और दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ शामिल हैं, जो स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों और सैन्य उपकरणों के निर्माण में काम आती हैं। ट्रम्प के अनुसार, विदेशी स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता से राष्ट्रीय सुरक्षा, तकनीकी विकास और आर्थिक समृद्धि पर खतरा मंडरा रहा है।
चीनी अधिकारियों ने अमेरिकी उच्च सीमा शुल्क व्यवस्था को लेकर दबाव महसूस करने की बात कही है। वहीं, चीन के आंकड़ों से पता चलता है कि पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था ने 5.4% की ग्रोथ दर्ज की, औद्योगिक उत्पादन 6.5% बढ़ा और खुदरा बिक्री में 4.6% की वार्षिक वृद्धि हुई। फिर भी, बीजिंग मानता है कि वैश्विक आर्थिक माहौल अब अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है और आर्थिक विकास तथा घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लिए और कदम उठाने होंगे।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा, “अब गेंद चीन के पास है। अगर बातचीत करनी है तो पहले चीन को कदम बढ़ाना होगा।” ट्रम्प ने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि चीन सहित अन्य देशों ने अमेरिकी आयात पर अधिक सीमा शुल्क लगा कर समस्या पैदा की है। उनका मानना है कि इन शुल्कों के बदलाब से न केवल विदेशी माल की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि यह अमेरिकी निर्माण उद्योग को मजबूती प्रदान करेगा और देश में स्थानीय रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे।
इस साल की शुरुआत से, ट्रम्प प्रशासन ने चीन सहित कई देशों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए हैं। फरवरी और मार्च में क्रमिक रूप से 10% तथा अप्रैल में 34% तक के शुल्क जोड़े गए, जिससे 9 अप्रैल तक कुल सीमा शुल्क 100% से पार हो गया। इस वजह से वैश्विक बाजारों में हलचल मच गई। अमेरिका के बाजारों में तेजी से गिरावट आई।
चीनी प्रतिक्रिया में, उन्होंने सॉर्गम, पोल्ट्री और बोनमील के आयात पर रोक लगा दी, 27 अमेरिकी कंपनियों पर व्यापार प्रतिबंध लगाए और विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत दर्ज कराई। साथ ही, चीन ने भारत और यूरोपीय संघ से भी समर्थन की मांग की, ताकि सामूहिक रूप से वैश्विक व्यापार चुनौतियों का सामना किया जा सके।
इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव अब केवल शुल्क तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह रणनीतिक और राजनीतिक मोर्चों तक फैल चुका है। दोनों देश अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कठोर कदम उठा रहे हैं, जिससे वैश्विक व्यापार पर भी असर पड़ रहा है। जहां अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है, वहीं चीन आर्थिक स्थिरता और वैश्विक समर्थन जुटाने की कोशिश में है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोनों देश समझौते की ओर बढ़ते हैं या यह टकराव और गहराता है।

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