गोधरा कांड पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दो-जजों की बेंच पर उठाए गए सवाल खारिज, दोषियों को नहीं मिली राहत

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,6 मई ।
गुजरात के बहुचर्चित और सनसनीखेज गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में दोषियों को सुप्रीम कोर्ट से एक और झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन दोषियों की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने दो जजों की बेंच द्वारा अपीलों की सुनवाई पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने साफ कर दिया कि दो-जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई के लिए पूरी तरह सक्षम है।

दोषियों की ओर से दलील दी गई थी कि गोधरा जैसे गंभीर और असाधारण मामले की सुनवाई कम से कम तीन या अधिक जजों की संविधान पीठ द्वारा की जानी चाहिए। उनका कहना था कि यह केस न सिर्फ कानूनी बल्कि सामाजिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी बेहद संवेदनशील है, इसलिए अधिक बड़ी बेंच की आवश्यकता है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि “केवल इस आधार पर कि मामला संवेदनशील है, यह नहीं कहा जा सकता कि दो-जजों की बेंच नाकाफी है।”

मुख्य न्यायाधीश की अगुआई वाली बेंच ने स्पष्ट किया, “न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान जरूरी है। अगर हर हाई-प्रोफाइल या संवेदनशील केस में बड़ी बेंच की मांग की जाएगी, तो न्यायिक व्यवस्था की गंभीरता पर सवाल खड़े होंगे।”

इस फैसले के बाद अब दोषियों की अपीलों पर दो जजों की बेंच द्वारा सुनवाई जारी रहेगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि दोषियों की ओर से उठाई गई आपत्तियाँ केवल मामले को लंबा खींचने की रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती हैं।

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई थी। यह घटना गुजरात दंगों की चिंगारी बनी और देशभर में भारी तनाव फैल गया था। इस मामले में कई लोगों को दोषी ठहराया गया और मौत की सज़ा से लेकर उम्रकैद तक की सजाएं सुनाई गई थीं।

अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया है, तो यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में इन अपीलों पर निर्णय की प्रक्रिया तेज होगी। जिन दोषियों ने पहले से ही सजा पा रखी है, उनके लिए यह फैसला एक गंभीर झटका माना जा रहा है।

यह केस एक बार फिर न्यायपालिका की निष्पक्षता और दृढ़ता का प्रतीक बनकर सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल कानूनी प्रक्रिया को मजबूत किया है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि न्याय में देरी की चालें अब ज्यादा नहीं चलेंगी।

 

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