सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार: नाबालिग से दुष्कर्म मामले में ‘सहमति संबंध’ शब्द के इस्तेमाल पर जताई नाराजगी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,21 मार्च।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक वकील को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी की जमानत याचिका में बार-बार “सहमति संबंध” शब्द का उपयोग किया। अदालत ने इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया कि नाबालिग के मामलों में सहमति का कोई कानूनी औचित्य नहीं होता।

मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्या कांत की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी। सुनवाई के दौरान, अदालत ने याचिका में बार-बार “सहमति संबंध” शब्द का उपयोग देख कड़ी नाराजगी जाहिर की।

जस्टिस सूर्या कांत ने वकील को फटकार लगाते हुए कहा, “जब हमने आपकी याचिका पढ़ी, तो हम मानसिक रूप से बीमार हो गए थे। आपने कम से कम 20 बार ‘सहमति संबंध’ शब्द का इस्तेमाल किया है। लड़की की उम्र क्या है? आप खुद याचिका में स्वीकार कर रहे हैं कि वह नाबालिग थी।”

वकील, जो आरोपी का बचाव कर रहे थे, बार-बार यह तर्क दे रहे थे कि पीड़िता और आरोपी के बीच संबंध सहमति से बने थे। इस पर कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि भारतीय कानून के तहत नाबालिग की सहमति का कोई कानूनी मूल्य नहीं होता

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए वकील की कानूनी समझ पर सवाल उठाए

“आप लोग (एओआर) आखिर कैसे योग्य हो रहे हैं? आपको बुनियादी कानून भी नहीं पता! आपने 20 बार ‘सहमति संबंध’ शब्द का इस्तेमाल किया है… कल को आप कहेंगे कि 8 महीने की बच्ची ने भी सहमति दी?”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संरक्षण अधिनियम (POCSO) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, नाबालिगों से जुड़े मामलों में सहमति का कोई कानूनी औचित्य नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद वकील ने अपनी गलती स्वीकार की और तुरंत माफी मांगी। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में पुलिस और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है।

यह घटना नाबालिगों से जुड़े मामलों में वकीलों की जिम्मेदारी और कानूनी प्रक्रिया की संवेदनशीलता को रेखांकित करती है। सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया स्पष्ट संकेत देती है कि कानूनी तकनीकीताओं के आधार पर नाबालिगों के शोषण को किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता

इस मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि वकीलों को न केवल कानूनी ज्ञान होना चाहिए, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी समझनी होगी, विशेष रूप से जब वे सुप्रीम कोर्ट जैसे शीर्ष न्यायालय में मामले लड़ रहे हों

आने वाले दिनों में इस जमानत याचिका के फैसले पर सबकी नजरें होंगी, क्योंकि इससे नाबालिगों से जुड़े मामलों में न्यायपालिका का स्पष्ट संदेश सामने आएगा।

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