दरकिनार कर दिए गए सुशील मोदी …..

कुमार राकेश
कुमार राकेश

*कुमार राकेश
कहते हैं, अहंकार व दंभ किसी के भी पतन व नाश का कारण बनता है। शायद बिहार के दिग्गज कहे जाने वाले भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी के साथ भी यही हुआ। श्री मोदी बिहार के अब उप मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे बल्कि एक मामूली कार्यकर्त्ता की भांति पार्टी के लिए काम करेंगे। ये इनका मजबूरी वाला बड़प्पन हैं ,जो है सो हैं।
सुशील जी संघ संस्कृति में पले-बढे लोकनायक जयप्रकाश जी 1974 छात्र आन्दोलन की उपज रहे हैं। नीतीश कुमार भी उसी आन्दोलन से प्रचारित हुए। ये सभी नेता लोकनायक के सम्पूर्ण क्रांति के कई अध्यायों में से कुछ भी पूरा नहीं कर सके हैं। सिवाय अपने व अपनों के लिए काम करने के ज्यादातर नेताओं का कमोबेश एक जैसा ही हाल हैं।
श्री मोदी पिछले कुछ वर्षो से सबकुछ भूलकर सुशील जी माता लक्ष्मी जी के विशेष भक्त हो गए थे। यही उनके कई शिष्यों का भी था ,जिनमे पूर्व श्रम मंत्री विजय कुमार सिन्हा जैसे लोग भी शामिल हैं, वैसे दम्भी नेताओ की लम्बी सूची है .जो हम जल्द ही आप सबो के सामने लायेंगे .
सुशील मोदी के लिए संगठन के कार्य व कार्यकर्ताओं का कोई मायने नहीं रह गया था। सुशील जी अपने नाम के विपरीत कार्य करने लग गए थे। 40 साल सक्रिय राजनीति व बेइंतहा शक्ति कम नहीं होते।
कहते हैं किसी की आह नहीं लेनी चाहिए ,आह की आग बड़ी भयंकर होती है, जो सामान्य आग होती है तो उसमे कोई भी सीधे तौर पर जल जाता है, भस्म हो जाता है। लेकिन इंसानियत के आह की आग सम्बन्धित व्यक्ति को तडपा तडपा कर मारती है। कहते हैं कर्म बोलता है .कर्म चिल्लाता भी है।
कर्म आपको सम्मानित करता है तो वही कर्म आपको अपमानित भी करता है। इसलिए सनातन हिन्दू धर्म के सभी मानक ग्रंथों में कर्म को प्रधानता दी गयी है, चाहे वो वेद, उपनिषद, पुराण, भगवद गीता, श्रीमदभागवत, रामायण हो, सभी ग्रंथो में कर्म की महिमा का ही जोरदार ढंग से व्याख्या की गयी है।
परन्तु मुद्दा ये हैं कि ऐसे ध्रुव सत्य को आप….हम भूल जाते हैं। ज्योहि भूले वही पर आप कष्ट में आए।
15 नवम्बर 2020 को कुछ ऐसा ही हुआ। सुशील मोदी का दंभ टूटा, अभिमान मिटा, गरूर ध्वस्त हुआ। अपमान हुआ जो उनके कथन में भी झलका, जैसा कि सुशील मोदी ने कहा, “मेरे कार्यकर्ता पद को तो कोई नही छिन सकता “.ये क्या बात हुयी ,अभी तक तो आप काबिज़ थे ,अचानक अपना रंग बदल लिया। गुस्सा भी ,वेदना भी ,आक्रोश भी ,फिर भी दंभ नहीं मिटा। शायद समय सुशील मोदी की कोई और परीक्षा लेना चाहता हो। भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने सभी निर्वाचित विधायको की मदद से 15 नवम्बर को प्रदेश के तार किशोर प्रसाद को भाजपा विधान मंडल का नेता व रेनू देवी को उपनेता चुन लिया। उसके पहले तक श्री मोदी स्वयं को ही उप मुख्यमंत्री चुन लिया था। चूँकि मीडिया पर उनकी अच्छी पकड़ हैं ,इसलिए मीडिया ने उनके विचार को चला भी दिया था, परन्तु हुआ सब उल्टा, सुशील मोदी के साथ लगभग कुछ वैसा ही हुआ ,जैसा पिछले वर्ष मई 2019 में भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के साथ हुआ था, ऐन वक़्त पर ही सुषमा जी को जोर का झटका धीरे से लगा था कि उनका नाम नरेन्द्र भाई मोदी केबिनेट सूची में नहीं था, जबकि उनके मातहत पूर्व विदेश सचिव डॉ एस जयशंकर को उनकी कुर्सी दे दी गयी थी। कहते हैं न -बॉस इज़ ऑलवेज राईट ..वही आज़ हुआ।
सुशील मोदी को कानोकान खबर भी नहीं हुयी और उनका पत्ता साफ़ हो गया। कहते है जो होना है ,वो होकर रहता है।
इन उठापटक के माहौल मे सुशील मोदी स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सके और ताबड़तोड़ ट्वीट कर डाला। ठीक है भाजपा नेता तार किशोर प्रसाद व रेंनु देवी उनसे कनिष्ठ है, इसका मतलब ये भी नहीं कि वे कामयाब नहीं है या नहीं हो सकते.हो सकते है। क्यो नहीं हो सकते, मेरे को तो केन्द्रीय नेतृत्व व भाजपा विधायक दल का ये फैसला खूब जचा। मन को मोहित कर गया।
केन्द्रीय नेतृत्व के पुरोधा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा.प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी सभी बधाई के पात्र है। इस अनुपम कार्य के लिए बिहार में भाजपा अब सरपट अबाध गति से दौड़ेगी। जिससे संगठन व सरकार को सामान्यता व समानता बरक़रार रहे।
*कुमार राकेश

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