“आतंकवाद मानवता का साझा शत्रु है, इसका उत्तर एकजुट होकर देना होगा” — उपराष्ट्रपति धनखड़ का तमिलनाडु में गरजता संदेश

ऊटी (तमिलनाडु), आज — उधगमंडलम की हसीन वादियों में आज शिक्षा जगत के महासम्मेलन के दौरान, देश के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का एक संदेश पूरे राष्ट्र की चेतना को झकझोर गया। यह केवल एक संबोधन नहीं था, बल्कि राष्ट्रवाद, एकता और मानवता के प्रति समर्पण का सजीव आह्वान था।

कुलपतियों के इस प्रतिष्ठित सम्मेलन में उपराष्ट्रपति ने एक बेहद संवेदनशील और भावुक क्षण में कहा,

“हमने कुछ क्षण पहले मौन धारण किया। मैं देश के साथ मिलकर पहलगाम में हुए जघन्य आतंकवादी हमले में शहीद निर्दोष नागरिकों के प्रति अपनी गहन संवेदना और आक्रोश प्रकट करता हूँ। यह एक भयावह याद दिलाता है कि आतंकवाद एक वैश्विक संकट है, जिसे पूरे विश्व को एकजुट होकर समाप्त करना होगा।”

इस सशक्त वक्तव्य के साथ श्री धनखड़ ने न केवल आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकता की आवश्यकता पर बल दिया, बल्कि भारत की शांतिप्रिय संस्कृति और वैचारिक विरासत की भी गौरवपूर्ण चर्चा की। उन्होंने कहा:

“भारत विश्व का सबसे शांतिप्रिय राष्ट्र है। हमारी सभ्यता की आत्मा ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अब विश्वभर में गूंज रही है।”

उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व को भी देश की सबसे बड़ी ताकत बताते हुए कहा कि तीसरे कार्यकाल में प्रवेश कर चुके इस दूरदर्शी नेतृत्व ने सिद्ध कर दिया है कि भारत के उत्थान को अब कोई आंतरिक या बाहरी चुनौती रोक नहीं सकती।

लेकिन यही नहीं — श्री धनखड़ का सबसे बड़ा संदेश था “राष्ट्र सर्वोपरि” की भावना को लेकर। डॉ. बी. आर. अंबेडकर का उल्लेख करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा:

“राष्ट्रीय हित सर्वोच्च है — यह हमारे संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर की अंतिम सलाह थी। हमें यह संकल्प लेना होगा कि राष्ट्रहित को कभी राजनीतिक, व्यक्तिगत या किसी समूह के स्वार्थ के अधीन नहीं होने देंगे।”

यह वक्तव्य केवल कुलपतियों के सम्मेलन तक सीमित नहीं रहा। यह पूरे देश के युवाओं, शिक्षकों, नेताओं और नागरिकों के लिए एक जागरण का बिगुल बन गया।

“आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सरकार की नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। मौन से उठी यह आवाज अब पूरे देश की प्रतिज्ञा बननी चाहिए — राष्ट्र पहले, राष्ट्र सदा!”

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