महाकुंभ में रबड़ी वाले बाबा की अनोखी कहानी: हर दिन 130 लीटर दूध का करते हैं इस्तेमाल, बांटते वक्त अपनाते हैं ये सिद्धांत

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,16 जनवरी।
महाकुंभ, जो भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अति महत्वपूर्ण अवसर है, हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। लाखों श्रद्धालु इस पवित्र मेला में शामिल होते हैं, गंगा स्नान करते हैं और अपनी आस्था को और प्रगाढ़ करते हैं। इस भव्य आयोजन में श्रद्धा, विश्वास और सेवा की अनगिनत कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। लेकिन कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं, जो पूरी दुनिया के सामने एक अलग मिसाल पेश करती हैं। महाकुंभ में एक ऐसी ही अनोखी और प्रेरणादायक कहानी है “रबड़ी वाले बाबा” की, जो हर दिन 130 लीटर दूध का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ अपना साधना करते हैं, बल्कि सेवा के एक नए रूप को भी प्रस्तुत करते हैं।

रबड़ी वाले बाबा की सेवा का अद्भुत सिद्धांत

महाकुंभ में एक बाबा हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह “रबड़ी वाले बाबा” के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह हर दिन करीब 130 लीटर दूध का इस्तेमाल करते हैं और उसे रबड़ी में बदलते हैं। लेकिन इनका उद्देश्य केवल स्वादिष्ट रबड़ी तैयार करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य है, श्रद्धालुओं को सेवा के एक खास रूप से जोड़ना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना।

रबड़ी वाले बाबा का मानना है कि सेवा का असली उद्देश्य है बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति तक मदद पहुंचाना। उनका सिद्धांत है, “खुदा के नाम पर जो भी मांगे, उसे कभी खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए।” इसलिए वह अपनी तैयार की रबड़ी को महाकुंभ में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के बीच बांटते हैं, चाहे वह गरीब हो, अमीर हो, साधू हो या सामान्य भक्त।

रबड़ी का वितरण: एक पवित्र कार्य

रबड़ी वाले बाबा का कहना है कि रबड़ी का वितरण केवल एक भोग नहीं, बल्कि एक पवित्र कार्य है। वह इसे एक तरीके से पुण्य की कमाई के रूप में देखते हैं। महाकुंभ में जब वह रबड़ी का वितरण करते हैं, तो उनकी आँखों में एक विशिष्ट आस्था और श्रद्धा का भाव होता है। उनका मानना है कि इस कार्य के माध्यम से वह न केवल अपने जीवन का उद्देश्य पूरा करते हैं, बल्कि समाज में एकता और प्रेम का संदेश भी फैलाते हैं।

उनका कहना है, “जो व्यक्ति एक कटोरी रबड़ी खाता है, वह सिर्फ स्वाद का अनुभव नहीं करता, बल्कि उस सेवा से वह खुद को भी शुद्ध करता है।” इसके अलावा, रबड़ी को बांटते समय बाबा का एक सिद्धांत है कि वह इसे समान रूप से सभी में वितरित करते हैं। उनके अनुसार, कोई भी व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति का हो, सभी को एक समान सेवा मिलनी चाहिए।

130 लीटर दूध और उसकी रहनुमाई

रबड़ी वाले बाबा हर दिन 130 लीटर दूध का इस्तेमाल करते हैं, जिसे वह अपने सेवा स्थल पर एकत्रित करते हैं। इस दूध को हलवा, मिठाई और रबड़ी बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। बाबा का मानना है कि दूध के साथ मिलकर जो मिठास और प्यार जुड़ा होता है, वह श्रद्धालुओं के दिलों में एक नयी ऊर्जा और आस्था भरता है।

उनका कहना है, “रबड़ी का स्वाद तब और भी मीठा हो जाता है जब उसमें सेवा और भक्ति का रंग होता है। यही कारण है कि मैं इसे सिर्फ एक खाद्य पदार्थ के रूप में नहीं, बल्कि एक माध्यम के रूप में देखता हूं, जो भक्तों को एकजुट करता है।”

समाज में एकता का संदेश

रबड़ी वाले बाबा का संदेश न केवल महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनका उद्देश्य है कि लोग आपस में भेदभाव छोड़कर एक-दूसरे की मदद करें, समाज में प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा दें। उनकी सेवा का तरीका हमें यह सिखाता है कि यदि हम अपनी श्रद्धा और विश्वास को दूसरों की भलाई में लगाते हैं, तो समाज में बदलाव संभव है।

निष्कर्ष

महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर रबड़ी वाले बाबा की अनोखी कहानी न केवल धर्म और आस्था की मिसाल प्रस्तुत करती है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि सेवा का असली अर्थ है – बिना किसी अपेक्षा के, बिना किसी भेदभाव के, हर किसी के जीवन में मिठास भरना। इस कहानी में छिपे संदेश को समझकर हम अपने जीवन में और समाज में एक सशक्त बदलाव ला सकते हैं। रबड़ी वाले बाबा की तरह अगर हम भी अपनी सेवा को निःस्वार्थ भाव से अंजाम दें, तो निश्चित रूप से दुनिया एक बेहतर स्थान बन सकती है।

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