कैसे चुने जाते हैं उपराष्ट्रपति

भारत में उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं और अगर किसी वजह से राष्ट्रपति का पद खाली होता है तो उनकी जिम्मेदारी उपराष्ट्रपति ही संभालते हैं. संविधान के हिसाब से सर्वोच्च पद की बात करें तो राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति का पद होता है फिर उसके बाद प्रधानमंत्री का. चुनाव में सिर्फ लोकसभा और राज्यसभा के सांसद वोट करते हैं.

इस चुनाव में मनोनीत सदस्य भी हिस्सा लेते हैं. उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 788 वोट डाले जा सकते है. इसमें लोकसभा के 543 सांसद और राज्यसभा के 243 सदस्य वोट करते हैं. राज्यसभा सदस्यों में 12 मनोनीत सांसद भी होते हैं.

जानिए कैसे होता है उपराष्ट्रपति का चुनाव

उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए

उम्मीदवार को भारत का नागरिक होना जरूरी होता है.

उम्र 35 से अधिक होनी चाहिए

वह राज्यसभा सदस्य चुने जाने की सभी योग्यताओं को पूरा करता हो.

चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी को 15,000 रुपये जमानत राशि के तौर पर जमा कराने होते हैं.

चुनाव हार जाने या 1/6 वोट नहीं मिलने पर यह राशि चुनाव आयोग में जमा हो जाती है.

वोटिंग के दौरान सांसद को एक ही वोट देना होता है, लेकिन उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है.

बैलेट पेपर से मतदान होता है.

मतदाता को अपनी पसंद को 1, दूसरी को 2 और इसी तरह से प्राथमिकता तय करनी होती है.

चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति के तहत होता है. इसमें मतदान खास तरह से होता है.

चुनाव को सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं.

जितने सदस्यों के वोट पड़ते हैं, उसकी संख्या में 2 से भाग देने के बाद उसमें एक जोड़ दिया जाता है.

जैसे कि चुनाव में कुल 787 सदस्यों ने वोट डाला तो इसे 2 से भाग देंगे तो अंर 393.50 आता है. इसमें 0.50 को हटा देंगे क्योकि दशमलव की बाद की संख्या नहीं गिनी जाती है. इसलिए यह संख्या 393 हुई.

अब इसमें 1 जोड़ने पर संख्या 394 होता है तो चुनाव जीतने के लिए 394 वोट मिलना जरूरी है.

बता दें कि इस बार उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा के पास पर्याप्त संख्या है.

भाजपा के पास लोकसभा सांसदों की सख्या 303 है.

राज्यसभा में 93 सांसद हैं.

उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल वोटों की संख्या पर नजर डालें तो भाजपा के पास आंकड़ा 395 का है, जबकि जीत के लिए सिर्फ 394 सदस्यों की जरूरत है.

चुनाव में वोटिंग खत्म होते ही वोटों की गिनती होती है.

पहले राउंड की गिनती में देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले वोट कितने मिले हैं.

अगर पहले राउंड में ही किसी उम्मीदवार को जरूरी कोटे के बराबर या उससे ज्यादा वोट मिलते हैं तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है.

अगर ऐसा नहीं होता उस उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है जिसे सबसे कम वोट मिले हैं.

फिर दूसरी प्राथमिकता को चेक किया जाता है कि किस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं.

फिर उसकी प्राथमिकता वाले ये वोट दूसरे प्रत्याशी में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं.