समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 15 सितंबर: केंद्रीय मंत्री और अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अंतरिम आदेश का स्वागत किया। सुप्रीम कोर्ट ने जहां पूरे अधिनियम को स्थगित करने से इंकार किया, वहीं कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है, जिन्हें लेकर कई याचिकाएँ दायर की गई थीं।
रिजिजू ने इस फैसले को भारतीय लोकतंत्र और संस्थाओं पर विश्वास का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हैं। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में सभी पहलुओं और सरकार की मंशा को मजबूती से रखा। यह हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है।”
लोकसभा-राज्यसभा में लंबी बहस का हवाला
रिजिजू ने इस बात पर जोर दिया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर संसद के दोनों सदनों में विस्तृत बहस हुई थी। उन्होंने कहा कि संसद की संप्रभुता पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, केवल कुछ प्रावधानों को ही चुनौती दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इसी बात पर मुहर लगाता है।
उन्होंने आगे कहा, “यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र की ताकत और हमारी संस्थाओं पर विश्वास को दर्शाता है। सरकार सभी समुदायों के समावेशी विकास और न्याय के लिए काम करती रहेगी।”
गरीब मुसलमानों को होगा सीधा लाभ
अल्पसंख्यक कार्य मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संशोधित अधिनियम गरीब मुसलमानों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों और अनाथों को सीधा लाभ पहुंचाएगा। उन्होंने कहा कि इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी, जो लंबे समय से चिंता का विषय रहा है।
उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोके गए प्रावधानों की समीक्षा की जाएगी। “हम मुस्लिम प्रैक्टिस से जुड़े प्रावधानों पर गौर करेंगे और देखेंगे कि नियमों के तहत क्या किया जा सकता है,” रिजिजू ने कहा।
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने अंतरिम आदेश में कहा कि अधिनियम की पूरी संवैधानिकता को चुनौती देने का कोई ठोस आधार नहीं है, लेकिन कुछ धाराओं को लेकर अंतरिम सुरक्षा दी गई है।
विशेष रूप से, अदालत ने उस प्रावधान पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि केवल पाँच वर्षों से इस्लाम का अभ्यास कर रहे व्यक्ति ही वक्फ बना सकते हैं। अदालत ने कहा कि जब तक राज्यों द्वारा इस नियम को लागू करने की स्पष्ट व्यवस्था नहीं की जाती, यह धारा लागू नहीं होगी।
इसी तरह, अदालत ने उस प्रावधान को भी रोक दिया जिसमें जिला कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया गया था कि कोई वक्फ संपत्ति सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर रही है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार न्यायिक और अर्ध-न्यायिक संस्थाओं का है, प्रशासनिक अधिकारियों का नहीं।
कानून की पृष्ठभूमि
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 2 और 3 अप्रैल को क्रमशः लोकसभा और राज्यसभा में पारित किया गया था और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन गया। इसके बाद से ही इसकी संवैधानिक वैधता को लेकर कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं।
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