भारत में अल्पसंख्यक कौन ?

तेजेन्द्र शर्मा।
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक धर्मों का कहीं ज़िक्र नहीं है। किन्तु फिर भी भारत के गृह मंत्रालय के संकल्प दिनांक 12.1.1978 की परिकल्पना के तहत अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी जिसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि संविधान तथा कानून में संरक्षण प्रदान किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक असमानता एवं भेदभाव को महसूस करते हैं। यह शायद किसी भी देश के लिये विचित्र किन्तु सत्य स्थिति कही जा सकती है कि संविधान में जिस श्रेणी का कोई उल्लेख ही नहीं, भारत सरकार उसके लिये परिकल्पना, अधिनियम और आयोग बना देती है। मगर इस सब के बावजूद यह निर्धारित नहीं करती कि अल्पसंख्यक का ‘सरकारी’ अर्थ क्या है।
भारत में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना भारतीय संसद के द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के प्रथम अध्यक्ष बनाए गये न्यायमूर्ति मुहम्मद सरदार अली ख़ान (1993-1996)।

एक ध्यान देने लायक स्थिति यह है कि भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक धर्मों का कहीं ज़िक्र नहीं है। किन्तु फिर भी भारत के गृह मंत्रालय के संकल्प दिनांक 12.1.1978 की परिकल्पना के तहत अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी जिसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि संविधान तथा कानून में संरक्षण प्रदान किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक असमानता एवं भेदभाव को महसूस करते हैं।
यह शायद किसी भी देश के लिये विचित्र किन्तु सत्य स्थिति कही जा सकती है कि संविधान में जिस श्रेणी का कोई उल्लेख ही नहीं, भारत सरकार उसके लिये परिकल्पना, अधिनियम और आयोग बना देती है। मगर इस सब के बावजूद यह निर्धारित नहीं करती कि अल्पसंख्यक का ‘सरकारी’ अर्थ क्या है।
23 अक्तूबर 1993 को उस समय की भारत सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर 6 धार्मिक समुदायों यानी कि मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का देश की जनसंख्या प्रतिशत 18.42 है।
बिना यह तय किये कि भारत में अल्पसंख्यक की परिभाषा क्या होनी चाहिये, समय-समय की भारत सरकारें इस विषय पर निर्णय लेती रहीं… कानून बनते रहे।
अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख कार्यों में शामिल थे – ‘अल्पसंख्यकों की उन्नति तथा विकास का मूल्यांकन करना; उनके हितों की रक्षा के लिए संरक्षण के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अनुसंशा करना; अल्पसंख्यकों के विरूद्ध किसी भी प्रकार के भेदभाव से उत्पन्न समस्याओं के कारणों का अध्ययन और इनके समाधान के लिए उपायों की अनुशंसा करना; अल्पसंख्यकों के सामाजिक आर्थिक तथा शैक्षणिक विकास से संबंधित विषयों का अध्ययन, अनुसंधान तथा विश्लेषण की व्यवस्था करना; अल्पसंख्यकों से संबंधित किसी भी मामले विशेषतया उनके सामने होने वाली कठिनाइयों पर केन्द्रीय सरकार हेतु नियत कालिक या विशेष रिपोर्ट तैयार करना।’
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत उन लोगों के लिए कुछ अलग से प्रावधान किया गया है जो भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हैं। लेकिन इसकी सटीक व्याख्या और परिभाषा नहीं होने की वजह से इसका बड़े स्तर पर दुरुपयोग भी हो रहा है। क्योंकि अल्पसंख्यक शब्द की कोई परिभाषा या व्याख्या संविधान में नहीं की गयी है, हम इसका शाब्दिक अर्थ मान सकते हैं कि, “संख्या बल के आधार पर दूसरे की तुलना में कम संख्या वाला”।
भारत के आठ राज्यों में आज हिन्दू आबादी अल्पसंख्यक है। जम्मू- कश्मीर में (28.44%), पंजाब (38.40%), लक्ष्य द्वीप (2.5%), मिज़ोरम (2.75%), नागालैण्ड (8.75%), मेघालय (11.53%), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर (31.39%)। याद रहे कि ये जनसंख्या के आंकड़े 2011 के हैं। वर्तमान स्थिति में आंकड़े और भी परेशान करने वाले हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक वकील अश्विनी उपाध्याय ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सामने यह मुद्दा 2017 में उठाया था।
यह सवाल किया जा सकता है कि आख़िर इस मुद्दे को उठाया क्यों जा रहा है। इसका मूल कारण यही है कि इन राज्यों में जो अल्पसंख्यक हैं उन्हें तो यह दर्जा और सहूलतें उन प्रदेशों में मिल नहीं रहीं। बल्कि जो बहुसंख्यक हैं वे अल्पसंख्यकों के दिये जाने वाली मदद का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं।
कुछ चौंकाने वाले आंकड़े बताते हैं कि 1961 में मेघालय में ईसाई जनसंख्या 35.21 प्रतिशत थी जो 2011 में बढ़कर 74.59 प्रतिशत हो गयी है। 1971 में अरुणाचल प्रदेश में ईसाई कुल जनसंख्या में 0.78 प्रतिशत थे जो 2011 में बढ़कर 30.26 प्रतिशत हो गये है। अरुणाचल की तरह ही 1951 में मणिपुर में हिंदू 60.12 तथा ईसाई 11.84 प्रतिशत थे । 2011 की जनगणना में हिंदू 60.12 प्रतिशत से घटकर 41.38 तथा ईसाई 11.84 प्रतिशत से बढ़कर 41.28 प्रतिशत हो गये हैं। ईसाई जनसंख्या में हो रही इस अप्रत्याशित वृद्धि के आधार पर कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में मेघालय, मिजोरम नगालैंड के साथ ही साथ अरुणाचल और मणिपुर भी ईसाई बहुल प्रदेश होने वाले है।
एक सवाल यह भी उठता है कि यदि किसी एक धर्म के मानने वालों की संख्या बाईस करोड़ से अधिक हो तो क्या उन्हें अल्पसंख्यक माना जा सकता है? यदि हम विश्व के तमाम देशों की जनसंख्या पर निगाह डालें तो भारत के अलावा केवल चीन, रूस, अमरीका, इंडोनेशिया और पाकिस्तान की आबादी बाईस करोड़ से अधिक है। बाक़ी 230 देशों में हर देश की आबादी बाईस करोड़ से कम है।
वर्ष 2006 में अल्पसंख्यक मामले मंत्रालय का गठन हुआ तब भी ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया। आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी अल्पसंख्यक कौन हैं, न तो संविधान में परिभाषित किया गया और न ही किसी अन्य कानून में।
अब समय आ गया है कि भारतीय संसद को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिये। संसद, न्यायपालिका और राज्य सरकारों को मिल कर देश-हित में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा तय करनी चाहिये।
(तेजेन्द्र शर्मा लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं)

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