समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,17 अप्रैल। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने तमिलनाडु सरकार की स्वायत्तता को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी घोषणा की है। तमिलनाडु सरकार ने एक समिति का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सी.जे. कुरियन जोसेफ करेंगे। यह समिति राज्य को अधिक स्वायत्त बनाने के लिए सुझाव देगी। इसका अर्थ है कि तमिलनाडु सरकार चाहती है कि केंद्र के बजाय राज्यों के पास अधिक अधिकार हों, खासकर उन विषयों पर जो अभी केंद्र और राज्य दोनों के अधीन हैं (संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं)। सरकार चाहती है कि और अधिक विषय राज्य सूची में आएं।
हालांकि, इस फैसले को लेकर राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है। बीजेपी ने इसे डीएमके की आगामी तमिलनाडु चुनावों से पहले की “ध्यान भटकाने की रणनीति” बताया है।
बीजेपी ने इस मुद्दे पर विधानसभा से वॉकआउट कर दिया है। प्रमुख विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक (AIADMK), जो अब 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन में है, उसने भी विरोधस्वरूप सदन से वॉकआउट किया। विपक्ष का आरोप है कि यह समिति केंद्र सरकार को निशाना बनाने के लिए बनाई गई है क्योंकि डीएमके का मानना है कि केंद्र ने राज्यों से कई अधिकार छीन लिए हैं और और भी अधिक अधिकार छीनने की कोशिश कर रहा है।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि यह समिति राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए और संघ-राज्य संबंधों को मज़बूत करने के लिए उपाय सुझाएगी। इस समिति में पूर्व नौकरशाह और कुलपति अशोक वर्धन शेट्टी और पूर्व उपाध्यक्ष राज्य योजना आयोग प्रोफेसर नागराज भी होंगे। यह समिति अंतरिम रिपोर्ट 2026 तक देगी और दो वर्षों के अन्दर अपनी अंतिम रिपोर्ट देगी।
स्टालिन ने बताया कि यह समिति विभिन्न कानूनों, आदेशों, जी.ओ. (गवर्नमेंट ऑर्डर्स), और अन्य बॉडीज जैसे अदालतों का अध्ययन करने पर कि कैसे कानूनों का उपयोग किया जा रहा है और यह विचार करेगी कि राज्य सूची के विषयों को वापस लेने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। उन्होंने कई उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि कैसे केंद्र ने राज्यों के अधिकारों में कटौती की है — जैसे कि हाल की जनसंख्या आधारित परिसीमन, तीन भाषा नीति, और मेडिकल प्रवेश में नीट (NEET) छूट के मामले।
स्टालिन ने स्पष्ट किया कि यह विभाजन या भारत से अलग होने की कोई कोशिश नहीं है। समिति किसी भी तरह से देश की एकता और अखंडता को हानि नहीं पहुंचाने के लिए सतर्क होगी।
सब कुछ ठीक है। राज्य को वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार दिए जा रहे हैं। पिछले 10 सालों में केंद्र ने सक्रिय रूप से काम किया है। लेकिन स्टालिन समिति बना रहे हैं और संविधान को लेकर सवाल उठा रहे हैं। पहले चुनाव से पहले ये लोग कहते थे कि अगर मोदी आए तो संविधान बदल देंगे। अब खुद डीएमके के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि संविधान को बदलने की जरूरत है।
डीएमके को कांग्रेस की आलोचना करनी चाहिए जिसने 1971 में समवर्ती सूची में बदलाव किया था। तीन साल से यह मुद्दा उठाने की ज़रूरत थी, लेकिन अब चुनाव के समय डीएमके यह मुद्दा उठा रही है। यह देश को बांटने वाला कदम है। । यह पूरी तरह देश की एकता को तोड़ने की कोशिश है।
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने राज्य की स्वायत्तता को लेकर समिति गठित करने का कदम एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। एक ओर डीएमके इसे राज्यों के अधिकारों की रक्षा बताती है, वहीं बीजेपी और AIADMK इसे देश को बांटने की कोशिश करार दे रहे हैं। अब देखना होगा कि यह मामला आगामी चुनावों में किस दिशा में जाता है।
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