बर्बादी की कगार पर ‘खज़ाने’ का दावा: क्या पाकिस्तान अब IMF का मोहताज नहीं रहा? शाहबाज़ शरीफ़ ने दिए संकेत

इस्लामाबाद – वर्षों से आर्थिक संकटों से जूझता पाकिस्तान अब एक बार फिर सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ ने हाल ही में दिए एक बयान में संकेत दिया है कि पाकिस्तान के पास “छिपा हुआ अपार धन” है और अगर उसका सही दोहन किया जाए, तो देश को अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। उनका यह दावा उस समय आया है जब पाकिस्तान एक और बेलआउट पैकेज की ओर देख रहा है और आर्थिक मोर्चे पर लगातार दबाव में है।

प्रधानमंत्री शरीफ़ ने कहा, “पाकिस्तान के पास ट्रिलियन डॉलर की वैल्यू वाला छिपा हुआ खज़ाना है, जिसे अगर ईमानदारी और मेहनत से विकसित किया जाए, तो हम IMF की कतार में खड़े रहने वाले मुल्क नहीं रहेंगे, बल्कि दुनिया की उभरती ताक़तों में शामिल हो सकते हैं।”

उनका यह बयान आश्चर्य और संदेह दोनों को जन्म देता है। एक ओर पाकिस्तान लगातार विदेशी कर्ज़ के बोझ, चालू खाता घाटे और रुपये के गिरते मूल्य से परेशान है, वहीं दूसरी ओर यह दावा कि देश के पास अपार आर्थिक संसाधन छिपे हुए हैं, वैश्विक आर्थिक विश्लेषकों के लिए चौंकाने वाला है।

पाकिस्तान के खनिज संसाधनों की बात की जाए, तो बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में सोना, तांबा और दुर्लभ खनिजों की प्रचुरता की बात वर्षों से होती रही है। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, सुरक्षा चुनौतियों और पारदर्शिता की कमी के चलते इन संसाधनों का व्यावसायिक दोहन नहीं हो पाया।

विश्लेषकों का मानना है कि शाहबाज़ शरीफ़ का यह बयान कहीं न कहीं जनता में आशा का संचार करने और IMF की शर्तों से उपजी नाराज़गी को शांत करने की एक रणनीति हो सकती है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि ‘ट्रिलियंस की छिपी संपत्ति’ से उनका सीधा इशारा किस ओर था — प्राकृतिक संसाधनों की ओर, विदेशों में जमा धन की ओर या किसी अन्य वित्तीय योजना की ओर।

पाकिस्तान ने हाल के वर्षों में IMF से कई बेलआउट पैकेज लिए हैं, लेकिन इनसे जुड़ी कठोर शर्तें अक्सर घरेलू सियासत के लिए चुनौती बनती रही हैं। हालिया आर्थिक हालात में पेट्रोल-डीजल पर सब्सिडी हटाना, टैक्स बढ़ाना और रुपया खुला छोड़ना जैसी शर्तों ने आम जनता पर बोझ डाला है।

ऐसे में यदि शाहबाज़ सरकार वास्तव में IMF से अलग रास्ता अपनाना चाहती है, तो उसे न केवल देश के संसाधनों को व्यावहारिक रूप से विकसित करना होगा, बल्कि विदेशी निवेश, कानून व्यवस्था और वित्तीय पारदर्शिता के मोर्चे पर भी मजबूत सुधार करने होंगे।

हालिया बयान से यह जरूर संकेत मिलता है कि इस्लामाबाद अब खुद को एक ‘मदद पाने वाले’ नहीं, बल्कि ‘संभावना रखने वाले’ देश की तरह पेश करना चाहता है। लेकिन केवल बयानबाज़ी से विश्वसनीयता नहीं बनती।

अंतरराष्ट्रीय निवेशक और संस्थाएं ज़मीन पर ठोस नीतिगत बदलाव, राजनीतिक स्थिरता और संस्थागत पारदर्शिता की मांग करते हैं। अगर पाकिस्तान अपने कथित “खज़ाने” का दोहन कर भी ले, तो उसे यह सिद्ध करना होगा कि वह इस धन का उपयोग सतत विकास और जनता की भलाई के लिए करने में सक्षम है।

शाहबाज़ शरीफ़ का दावा पाकिस्तान की राजनीति में एक नया विमर्श खोल सकता है — एक ऐसा विमर्श जो उम्मीद और हकीकत के बीच झूलता दिखता है। बर्बादी की कगार पर खड़े मुल्क के लिए “छिपे खज़ाने” की बात भले ही आकर्षक हो, लेकिन जब तक इसे योजनाओं, निवेश और निष्पादन में बदला नहीं जाता, तब तक यह सिर्फ एक और ‘राजनीतिक नारा’ ही रहेगा।

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