अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं”: न्यायिक अतिरेक पर उपराष्ट्रपति धनखड़ का प्रहार, अनुच्छेद 142 को बताया “परमाणु मिसाइल”
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 अप्रैल। न्यायिक अतिरेक (judicial overreach) पर तीखी आलोचना करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को लंबित विधेयकों पर समयसीमा के भीतर निर्णय लेने का सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया निर्देश पर गहरी चिंता व्यक्त की है। वक्फ विधेयक और कार्यपालिका के मामलों में बढ़ते न्यायिक हस्तक्षेप के संदर्भ में बोलते हुए, उन्होंने अनुच्छेद 142 के दुरुपयोग को लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक “24×7 परमाणु मिसाइल” करार दिया।
उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से कहा, “हम ऐसी स्थिति की अनुमति नहीं दे सकते जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें। यह हमारे संविधान की परिकल्पना कभी नहीं थी।” उन्होंने तर्क दिया कि भारत ऐसी लोकतंत्र नहीं है जहां न्यायाधीश विधायी कार्य करें, कार्यपालिका की भूमिका निभाएं और एक “सुपर संसद” बन जाएं। हाल की घटनाओं को उजागर करते हुए उन्होंने एक न्यायाधीश पर बेहिसाब नकदी के आरोप की ओर इशारा किया। “एक महीना हो गया, लेकिन अभी तक एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई,” उन्होंने कहा और इस मामले की जांच कर रही न्यायिक समिति की वैधता पर सवाल उठाया।
धनखड़ ने कहा कि जांच करना कार्यपालिका का क्षेत्राधिकार है, न कि न्यायपालिका का। उन्होंने पूछा, “क्या उस समिति को संविधान से शक्ति प्राप्त है? या संसद द्वारा पारित किसी कानून से? नहीं। अधिकतम, वह केवल सिफारिश कर सकती है।”
कानून के शासन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने पूछा: “क्या हम कानून के शासन को कमजोर कर रहे हैं? क्या हम उन लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं जिन्होंने हमें संविधान दिया?”
उपराष्ट्रपति ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को असीमित अधिकार देने के प्रति भी चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “यदि सभी अधिकार मुख्य न्यायाधीश के पास केंद्रित हो जाएं, तो इसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। संविधान केवल अनुच्छेद 145(3) के तहत पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा व्याख्या की अनुमति देता है। जब यह प्रावधान लिखा गया था, तब सर्वोच्च न्यायालय में केवल आठ न्यायाधीश थे। आज 30 हैं। उस संरचना पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।”
धनखड़ ने अंत में अनुच्छेद 142 को एक ऐसा न्यायिक उपकरण बताया जो अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ किसी भी समय छोड़ा जा सकने वाला “परमाणु मिसाइल” बन चुका है। ये टिप्पणियां उस समय आई हैं जब देश में भारत के संवैधानिक संस्थानों के बीच शक्तियों के संतुलन को लेकर राष्ट्रीय विमर्श तेज़ हो रहा है।
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