कनाडा में हिंदूफोबिया का बढ़ता साया: लक्ष्मी नारायण मंदिर बना खालिस्तानी उग्रवादियों का निशाना

सरे (ब्रिटिश कोलंबिया), कनाडा: कनाडा की ज़मीन पर हिंदूफोबिक घटनाओं की श्रृंखला थमने का नाम नहीं ले रही है। ताज़ा मामला ब्रिटिश कोलंबिया के सरे शहर से सामने आया है, जहां प्रतिष्ठित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पर खालिस्तानी उग्रवादियों ने हमला बोल दिया। यह घटना न सिर्फ हिंदू समुदाय के लिए अपमानजनक है, बल्कि कनाडा में भारतीय मूल के शांतिप्रिय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

दो अज्ञात शख्सों ने मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार और खंभों पर खालिस्तान के समर्थन में आपत्तिजनक नारे लिखे। यही नहीं, हमलावरों ने मंदिर की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया और लगे हुए सुरक्षा कैमरों तक को उखाड़ कर अपने साथ ले गए। यह साफ दर्शाता है कि यह हमला योजनाबद्ध था और इसका उद्देश्य हिंदू समुदाय को डराना व आतंकित करना था।

यह पहली बार नहीं है जब कनाडा में हिंदू धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया है। इससे पहले:

  • जनवरी 2025: ब्रैम्पटन के एक हिंदू मंदिर की दीवारों पर भारत विरोधी चित्र बनाए गए थे।

  • सितंबर 2022: टोरंटो स्थित स्वामीनारायण मंदिर पर खालिस्तानी नारे लिखे गए।

  • जुलाई 2022: रिचमंड हिल के विष्णु मंदिर में महात्मा गांधी की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त किया गया था।

इन घटनाओं की आवृत्ति और उग्रता यह संकेत देती है कि कनाडा में हिंदू समुदाय के खिलाफ सुनियोजित घृणा फैलाई जा रही है, जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

यह हमला एक धार्मिक स्थल पर ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता और सहिष्णुता के मूल्यों पर हमला है। यह घटनाएं न केवल विश्वभर के हिंदुओं को आहत करती हैं, बल्कि कनाडा में विविधता और समावेशिता की अवधारणा को भी चुनौती देती हैं।

अब समय आ गया है कि इन घटनाओं की एक स्वर से वैश्विक निंदा की जाए। कनाडा सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल दोषियों को गिरफ्तार करे, बल्कि ऐसे कट्टरपंथियों की गतिविधियों पर पूर्ण विराम लगाए।

हिंदू धर्म सहिष्णुता और शांति का प्रतीक है, लेकिन यह कमजोरी नहीं। इन उकसावेपूर्ण कृत्यों से न तो हमारी आस्था डगमगाएगी और न ही हमारी एकता बिखरेगी। यह हमला विफल होगा, जैसे हर असत्य पर सत्य की जीत होती है।

क्या कनाडा अपनी धरती को नफरत के बीज से दूषित होने देगा? या फिर वो एक मजबूत, समावेशी लोकतंत्र बनकर सामने आएगा? यह सवाल सिर्फ हिंदुओं का नहीं, यह सवाल उस मूलभूत मानवता का है, जिस पर किसी भी सभ्य समाज की नींव टिकी होती है।

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