सुप्रीम कोर्ट का सवाल: अपराधी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता, तो नेता कैसे चुनाव लड़ सकता है?

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,13 फरवरी।
भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। हाल ही में शीर्ष अदालत ने एक अहम सवाल उठाया है—“अगर किसी अपराधी को सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाता है, तो वही व्यक्ति चुनाव लड़कर जनता का प्रतिनिधि कैसे बन सकता है?” यह सवाल भारतीय राजनीति और लोकतंत्र की पवित्रता को लेकर एक गंभीर बहस को जन्म देता है।

सुप्रीम कोर्ट का सवाल और इसकी पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस दौरान की जब वह दागी नेताओं के चुनाव लड़ने की योग्यता पर सुनवाई कर रहा था। भारतीय संविधान के तहत, अगर कोई व्यक्ति गंभीर आपराधिक मामलों में दोषी पाया जाता है, तो उसे सरकारी नौकरी करने से रोका जाता है, लेकिन राजनीति में उसकी एंट्री पर कोई सख्त रोक नहीं है।

आज, कई ऐसे नेता संसद और विधानसभा में बैठे हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। कई बार अदालतों द्वारा दोषी ठहराए जाने के बावजूद, वे राजनीति में सक्रिय रहते हैं और चुनाव भी जीत जाते हैं। यह स्थिति लोकतांत्रिक नैतिकता पर बड़ा प्रश्न खड़ा करती है

सरकारी नौकरी बनाम राजनीति: दोहरे मापदंड क्यों?

अगर किसी व्यक्ति पर भ्रष्टाचार, हत्या, दुष्कर्म, या अन्य संगीन अपराधों का आरोप है, तो उसे किसी भी सरकारी पद के लिए अयोग्य माना जाता है। सरकारी सेवा में भर्ती के लिए चरित्र प्रमाण पत्र अनिवार्य होता है और अगर किसी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हो, तो उसे नौकरी नहीं दी जाती।

लेकिन जब बात चुनाव लड़ने की आती है, तो यही कठोर नियम लागू नहीं होते। कोई भी व्यक्ति, जिस पर आपराधिक मामले चल रहे हों, वह चुनाव लड़ सकता है और जनता का प्रतिनिधि बनकर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त कर सकता है। यह स्थिति संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) के सिद्धांत पर भी सवाल खड़ा करती है

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के आंकड़े

विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय संसद और विधानसभाओं में अपराधी छवि वाले नेताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है

  • 2019 के लोकसभा चुनाव में चुने गए सांसदों में से 43% पर आपराधिक मामले दर्ज थे
  • इनमें से 29% पर गंभीर अपराधों जैसे हत्या, दुष्कर्म, अपहरण, और भ्रष्टाचार के मामले चल रहे थे
  • कुछ राज्यों में तो 50% से अधिक विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं

इस तरह की स्थिति न केवल लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचाती है, बल्कि जनता का भरोसा भी राजनीति से उठने लगता है।

क्या कहता है कानून?

भारतीय संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) के तहत, किसी सांसद या विधायक को तभी अयोग्य ठहराया जाता है जब वह किसी अपराध में दोषी करार दिया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है

  • लेकिन जब तक कोर्ट अंतिम फैसला नहीं सुनाती, तब तक वह नेता चुनाव लड़ सकता है और जनप्रतिनिधि बना रह सकता है
  • कई बार मामले वर्षों तक अदालतों में लंबित रहते हैं और नेता चुनाव दर चुनाव लड़ते रहते हैं

समाधान क्या हो सकता है?

  1. राजनीति से अपराधियों को बाहर करने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं
  2. अगर किसी पर गंभीर अपराध के आरोप तय हो चुके हैं, तो उसे चुनाव लड़ने से रोका जाए
  3. मुकदमे तेजी से निपटाने के लिए विशेष अदालतों का गठन हो
  4. राजनीतिक दलों को स्वेच्छा से अपराधियों को टिकट न देने का संकल्प लेना चाहिए
  5. चुनाव आयोग को और अधिक अधिकार दिए जाएं ताकि वह दागी नेताओं पर कार्रवाई कर सके

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। अगर अपराधी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता, तो उसे चुनाव लड़ने का अधिकार भी नहीं होना चाहिए। स्वच्छ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि कानून सभी के लिए समान रूप से लागू हो। जनता को भी जागरूक होकर ऐसे नेताओं को चुनाव में खारिज करना चाहिए जो आपराधिक छवि रखते हैं। केवल तब ही भारत में एक स्वच्छ और पारदर्शी लोकतंत्र स्थापित हो सकता है

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